Advertisement :
कृष्ण भक्त मीराबाई की जीवनी | Meera Bai Biography In Hindi
Advertisement :
मीराबाई का जीवन परिचय | All About Meera Bai Biography In Hindi
- नाम -मीराबाई
- जन्म -1498
- जन्म स्थान - कुड़की ( राजस्थान )
- पिता का नाम - रतन सिंह
- माता का नाम -वीर कुमारी
- पति का नाम -भोज राज
- गुरु का नाम - संत रविदास
- मीरा बाई की मृत्यु -1557 (द्वारका गुजरात )
मीरा बाई का बचपन
मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ विवाह
श्री कृष्ण भक्ति में हुई लीन
image source
पति की मौत के बाद इनकी भक्ति दिनों-दिन बढ़ती गई। मीरा अक्सर मंदिरों में जाकर कृष्ण की मूर्ति के सामने नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्णभक्ति और इस प्रकार से नाचना और गाना उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा जिसके वजह से कई बार उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश भी की ऐसा माना जाता है कि सन् 1533 के आसपास मीरा को ‘राव बीरमदेव’ ने मेड़ता बुला लिया और मीरा के चित्तौड़ त्याग के अगले साल ही सन् 1534 में गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर कब्ज़ा कर लिया। इस युद्ध में चितौड़ के शासक विक्रमादित्य मारे गए तथा सैकड़ों महिलाओं ने जौहर किया। इसके पश्चात सन् 1538 में जोधपुर के शासक राव मालदेव ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया जिसके बाद बीरमदेव ने भागकर अजमेर में शरण ली और मीरा बाई ब्रज की तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ीं। सन् 1539 में मीरा बाई वृंदावन में रूप गोस्वामी से मिलीं। वृंदावन में कुछ साल निवास करने के बाद मीराबाई सन् 1546 के आस-पास द्वारका चली गईं।
मीरा के पद व दोहे
#1.
"मनमोहन कान्हा विनती करूं दिन रैन
राह तके मेरे नैन
अब तो दरस देदो कुञ्ज बिहारी
मनवा हैं बैचेन
नेह की डोरी तुम संग जोरी
हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी
हे मुरली धर कृष्ण मुरारी
तनिक ना आवे चैन
राह तके मेरे नैन ……..
मै म्हारों सुपनमा
लिसतें तो मै म्हारों सुपनमा"
मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
मीरा अपने भजन में भगवान् कृष्ण से विनती कर रही हैं कि हे कृष्ण ! मैं दिन रात तुम्हारी राह देख रही हूँ. मेरी आँखे तुम्हे देखने के लिए बैचेन हैं मेरे मन को भी तुम्हारे दर्शन की ही ललक हैं.मैंने अपने नैन केवल तुम से मिलाये हैं अब ये मिलन टूट नहीं पायेगा. तुम आकर दर्शन दे जाओं तब ही मिलेगा मुझे चैन.
Advertisement :
#2.
"मतवारो बादल आयें रे
हरी को संदेसों कछु न लायें रे
दादुर मोर पापीहा बोले
कोएल सबद सुनावे रे
काली अंधियारी बिजली चमके
बिरहिना अती दर्पाये रे
मन रे परसी हरी के चरण
लिसतें तो मन रे परसी हरी के चरण"
मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
बादल गरज गरज कर आ रहे हैं लेकिन हरी का कोई संदेशा नहीं लाये. वर्षा ऋतू में मौर ने भी पंख फैला लिए हैं और कोयल भी मधुर आवाज में गा रही हैं.और काले बदलो की अंधियारी में बिजली की आवाज से कलेजा रोने को हैं. विरह की आग को बढ़ा रहा हैं. मन बस हरी के दर्शन का प्यासा हैं.
#3.
"मै म्हारो सुपनमा पर्नारे दीनानाथ
छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हो श्री बृजनाथ
सुपनमा तोरण बंध्या री सुपनमा गया हाथ
सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग
मीरा रो गिरीधर नी प्यारी पूरब जनम रो हाड
मतवारो बादल आयो रे
लिसतें तो मतवारो बादल आयो रे"
मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
मीरा कहती हैं कि उनके सपने में श्री कृष्ण दुल्हे राजा बनकर पधारे. सपने में तोरण बंधा था जिसे हाथो से तोड़ा दीनानाथ ने.सपने में मीरा ने कृष्ण के पैर छुये और सुहागन बनी.
#4.
"मन रे परसी हरी के चरण
सुभाग शीतल कमल कोमल
त्रिविध ज्वालाहरण
जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण
जिन चरण ब्रह्माण भेद्यो नख शिखा सिर धरण
जिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करण
जिन चरण फनी नाग नाथ्यो गोप लीला करण
जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण
दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तारण
मीरा मगन भाई
लिसतें तो मीरा मगनभाई"
मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
मीरा का मन सदैव कृष्ण के चरणों में लीन हैं.ऐसे कृष्ण जिनका मन शीतल हैं. जिनके चरणों में ध्रुव हैं. जिनके चरणों में पूरा ब्रह्माण हैं पृथ्वी हैं. जिनके चरणों में शेष नाग हैं. जिन्होंने गोबर धन को उठ लिया था. ये दासी मीरा का मन उसी हरी के चरणों, उनकी लीलाओं में लगा हुआ हैं.
#5.
" पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ..
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो. पायो जी मैंने…
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो. पायो जी मैंने…
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो. पायो जी मैंने…
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो. पायो जी मैंने…
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो. पायो जी मैंने…"
मीरा के पद दोहे हिंदी अर्थ
मीरा ने रान नाम का एक अलोकिक धन प्राप्त कर लिया हैं. जिसे उसके गुरु रविदास जी ने दिया हैं.इस एक नाम को पाकर उसने कई जन्मो का धन एवम सभी का प्रेम पा लिया हैं.यह धन ना खर्चे से कम होता हैं और ना ही चोरी होता हैं यह धन तो दिन रात बढ़ता ही जा रहा हैं. यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं. इस नाम को अर्थात श्री कृष्ण को पाकर मीरा ने ख़ुशी – ख़ुशी से उनका गुणगान गाया.
मीरा बाई की मृत्यु
ऐसा माना जाता है कि बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहने के बाद मीरा द्वारिका चली गईं जहाँ सन 1560 में वे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गईं।
Read More - संगीत सम्राट तानसेन का जीवन परिचय