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कौन थे पान सिंह तोमर? जिनके जीवन पर बॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है | Paan Singh Tomar Biography In Hind
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दोस्तों चंबल की घाटियों का जिक्र होते ही हमें वहां की घाटियों में रहकर पुलिस और सरकार में खोप पैदा करने वाले मान सिंह,महिला डाकू फूलन देवी,माधव सिंह, विक्रम अल्ला जैसे डाकुओं के इतिहास की यादें ताजा हो जाती है दोस्तों ये उन डाकुओं के नाम है जिनकी आज भी चंबल की उन घुमावदार और अनोखी पहाड़ियों यादे बसी हुई है इन सभी डाकुओं ने चंबल में ही रहकर कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया और यही से ये अपनी टीम को चलाते थे लेकिन दोस्तों इन सभी लोगो की कहानी के साथ एक कहानी ऐसी भी जुडी जो इन लोगो से काफी अलग थी दोस्तों हम बात कर रहे डकैत पान सिंह तोमर की अपने शुरुआती जीवन में उन्होंने अपने कार्यो से कई लोगो का दिल जीता और वो लोगो के लिए एक आदर्श व्यक्ति के तरह थे और वही उम्र के दूसरे पड़ाव में उनके साथ ये विपरीत हुआ उन्हें अपने जीवन का ये पड़ाव लोगो की नफ़रत और गुस्से के बीच जीना पड़ा तो चलिए दोस्तों जानते है की कैसे एक देश की रक्षा करने वाला सैनिक बन गया चंबल का सबसे बड़ा डकैत.
पान सिंह तोमर का जन्म मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के एक छोटे से गांव भिडोसा में 1 जनवरी 1932 में हुआ था जहां लोग बचपन से सपना देखते है की वो बड़ा होकर एक अच्छा डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहता है लेकिन इसके विपरीत पान सिंह तोमर का सपना था की वो देश की सेवा के लिए एक सैनिक बनें आगे चलकर उन्होंने भारतीय सेना के लिए तैयारी की और सेना में भर्ती हो गए सेना में भर्ती होने के बाद उनकी पोस्टिंग पहली जोइनिंग उत्तराखंड के रुड़की में सूबेदार पद से हुई सेना में भर्ती होने के बाद उन्हें अपनी प्रतिभा ज्ञात हुई की वो एक सैनिक होने के साथ एक अच्छे एथलीट भी है पान सिंह तोमर में कई किलोमीटर लगातार दौड़ने का खास टेलेंट था तब सेना के अफसरों ने उनके इस हुनर को पहचाना और उन्हें लंबी दौड़ की तैयारी करवाने लगे दोस्तों पान सिंह तोमर ने देश की सेवा के लिए एक सैनिक बन अपना फर्ज अदा करने के साथ एक अच्छा एथलीट बन देश के लिए कई मैडल जीते और पूरी दुनिया में देश का गौरव बढ़ाया
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दोस्तों पान सिंह तोमर ने 1958 में आयोजित हुए टोक्यो एशियाई गेम्स में भारत देश के एथलीट के रूप में इस खेल में प्रतिनिधित्व किया था और लगातार 7 सालो तक स्टीपलचेज़ के चैम्पियन भी रहे थे साथ ही पान सिंह तोमर ने अपने नाम 3000 मीटर को 9 मिनट 2 सेकंड में पूरा कर ऐसा रिकॉर्ड कायम किया था जिसे तोड़ने में दुनिया के एथिलीटो को करीब 10 साल लग गए थे खेल में उनकी इस प्रतिभा के कारण ही सेना ने साल 1962 और 1965 चीन और पाकिस्तान के युद्ध शामिल नहीं किया था क्योकि देश अपने इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी को कभी नहीं खोना चाहता था देश की एक सैनिक और एथलीट के रूप में सेवा देने के बाद उन्होंने साल 1972 में रिटायमेंट ले लिया
हर सैनिक की तरह अपना बाकि का जीवन परिवार और गांव के लोगो के साथ जीने के लिए पान सिंह गांव में रहने के लिए चले गए लेकिन गांव में ही रहने वाले एक खतरनाक व्यक्ति बाबू से अपनी पुस्तैनी जमीन को लेकर विवाद हो गया बाबू सिंह गांव एक दबंग व्यक्ति माना जाता था और वो गांव के लोगो को डराने के लिए कई लाइसेंस की बंदूके रखता था पान सिंह और बाबू सिंह के बीच झगड़े की प्रमुख वजह थी की पान सिंह के पूर्वजों ने बाबू सिंह के पूर्वजों के पास अपनी जमीन के कागजात गिरवी रखें थे और उन्हीं को लेकर इन दोनों के बीच झगडे की शुरुआत हुई लड़ाई झगड़ो से हमेशा 100 कदम दूर रहने वाले पान सिंह अपनी इस बात को लेकर अपने जिला कलेक्टर के कार्यलय में जा पहुंचे कलेक्टर कार्यलय में पहुंचकर पान सिंह ने कलेक्टर को अपनी देश के लिए की गई उपलब्धियों के बारे में बताया और उन्हें मैडल दिखाए तब कलेक्टर ने उन्हें इन मेडल्स को फेक दिया और उन्हें वहां से बाहर निकाल दिया
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ये सब देख पान सिंह को अपनी अब तक देश के लिए प्राप्त की गई उपलब्धियां बेकार लगने लगी थी लेकिन एक सैनिक होते हुए उन्होंने इतनी जल्दी हार स्वीकार नहीं की और अपने इस मसले को गांव की पंचायत तक ले गए और उन्होंने अपने लिए इंसाफ की गुहार की तब गांव के पंचो ने फैसला सुनाया की बाबू सिंह से जमीन के कागजात लेने के लिए पान सिंह को 3000 रूपये बाबू सिंह को देने होंगे तब पंचो का ये फैसला पान सिंह को बिलकुल सही नहीं लगा और उन्होंने ये रकम देने से मना कर दिया
पान सिंह तोमर के द्वारा पंचायत का ये फैसला नहीं मानने के कारण बाबू सिंह ने अपनी दबंगगई दिखाना शुरू कर दिया और एक दिन जब वो किसी कारणवश घर से बाहर गए हुए थे तब बाबू सिंह ने 95 साल की पान सिंह तोमर की माँ को काफी मारा जब पान सिंह तोमर घर लोटे तब उन्होंने अपनी माँ की हालत देख काफी क्रोधित हो गए और तब उन्होंने गलत रास्ते से ही सही लेकिन बाबू सिंह से बदला लेने का फैसला कर लिया दोस्तों इसी मोड़ से शुरू होती है एक ईमानदार और देश के लिए कई मैडल जितने वाले पान सिंह तोमर के बागी बनने की कहानी एक दिन पान सिंह तोमर ने अपने भतीजे बलवंत सिंह के साथ मिल कर बाबू सिंह को रास्ते में घेरने की कोशिश की तब इस बात की भनक बाबू सिंह को लग जाती है और वो उनसे बचने के लिए भागना शुरू कर देता है करीब 1 किलोमीटर तक भागने के बाद पान सिंह तोमर बाबू सिंह पर गोलिया बरसा देता है और उसे वही मौत के घाट उतार देता है और इसी हादसे के बाद एक सैनिक से पान सिंह की छवि एक बाकि के रूप में बन जाती है बाद में अपने आपको चंबल की घाटियों में समर्पित कर देता है
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दोस्तों अब एक दौर में देश के लिए मैडल पाने के लिए ट्रैक पर दौड़ने वाला वाला पान सिंह अब चंबल की बीहड़ो में दौड़ने लगा था धीरे धीरे पान सिंह तोमर नाम एक डकैत और हत्या करने वाले डाकू के रूप में जाना जाने लगा और तब पान सिंह का आतंक इतना खतरनाक हो गया था की तब पुलिस भी पान सिंह को पकड़ने से डरती थी सरकार ने पान सिंह तोमर को पकड़ने के लिए करीब 10,000 का इनाम रखा और तब 1 अक्टूम्बर 1981 को इंस्पेक्टर महेंद्र प्रताप सिंह और उनके साथ करीब 500 सुरक्षा बलों ने पान सिंह तोमर को चंबल में ही ढूंढ़कर उसके आतंक का अंत कर दिया पुलिस के द्वारा किये गए इस ऑपरेशन में पान सिंह के साथ उनके कई साथी मारे गए
दोस्तों पान सिंह को मारने के लिए पुलिस और डाकुओं के बीच करीब 12 घंटे तक फायरिंग चली थी और दोस्तों इसी तरह देश के एक सैनिक एक जांबाज खिलाड़ी और एक बागी की जीवन लीला समाप्त हो जाती है पान सिंह तोमर की लाइफ से जुडी बॉलीवुड में उनकी बायोपिक मूवी भी बन चुकी है जिसमे इरफ़ान खान ने पान सिंह तोमर का रोल किया है
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